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‘हिन्दू धर्मं में समाधि एक मान्य सिद्धान्त हैं :हाईकोर्ट

चंडीगढ़। दिव्य ज्योति जागृति
संस्थान के संस्थापक आशुतोष महाराज
के कथित पुत्र दलीप कुमार झा द्वारा
पिता के शव का अंतिम संस्कार करने
की अनुमति मांगने पर पंजाब एवं
हरियाणा हाईकोर्ट ने पूछा है कि
आखिर कौन-सा मौलिक अधिकार
यह कहता है कि बेटा पिता के शव का
अंतिम संस्कार करे यह अनिवार्य है।
मामले की के दौरान मंगलवार को
संस्थान और कथित पुत्र दलीप झा की
दलीलें पूरी हो गईं। पंजाब सरकार की
ओर से अपील की गई कि इस मामले में
उनका पक्ष सॉलिसिटर जनरल ऑफ
इंडिया रखेंगे। ऐसे में एक मार्च को रखी
जाए। हाईकोर्ट ने सरकार की दलील
स्वीकार कर एक मार्च तक टाल दी।
वहीं अनुयायियों के वकील सीनियर
अधिवक्ता सुनील चड्ढा ने कोर्ट में
समाधि के विषय को समझाया। इस
पर जस्टिस महेश ग्रोवर और जस्टिस
शेखर धवन की खंड पीठ ने कहा “अदालतें
समाधि जैसे धार्मिक, अध्यात्मिक
और दार्शनिक विषय की व्याख्या
करने में सक्षम नहीं हैं! अदालतों की कुछ
सीमाएं हैं, वे क़ानून का विश्लेषण कर
सकती हैं परन्तु अध्यात्म मीमांसा के
सिद्धांतों की विवेचना नहीं कर
सकती इसलिए कोर्ट समाधि के विषय
पर कोई टिपण्णी नहीं कर सकती।”
अनुयायियों के अधिवक्ता ने कहा कि
समाधि को हिंदु धर्म का मुख्य एवं
अनिवार्य अंग सिद्ध करने के लिए यह
आवश्यक है की समाधि के सिद्धांत
को समझा जाए ताकि संविधान के
अनुछेद 25 और 26 के तहत प्राप्त संरक्षण
इस मामले में अनुयायियों को मिल
सके।

इस पर कोर्ट ने कहा कि इस अनुछेद के
तहत समाधि में विश्वास रखने का
अधिकार अनुयायियों को है, लेकिन
धर्म, आध्यात्म और विशुद्ध दर्शन के
सिद्धांत की विवेचना के लिए
अदालतें उचित मंच नहीं हैं। जस्टिस महेश
ग्रोवर ने यह भी कहा कि “कोर्ट
योगियों की शक्ति पर टिप्पणी
नहीं कर सकता अदालतों की कुछ
सीमाएं हैं।”

अनुयायिओं के वकील द्वारा स्वामी
विवेकानंद और साईं बाबा कि
समाधि के ऐतिहासिक प्रसंग कोर्ट में
रखे गए जिस पर कोर्ट ने कहा कि “ऐसे
ही अन्य संतों के समाधि में जाने के
उदाहरण हैं, हिंदु धर्मं में समाधि एक
मान्य सिद्धान्त है और इसे कोई भी
नकार नहीं रहा है।”

हालाकिं कोर्ट ने यह प्रश्न भी
उठाया की यदि समाधि संस्थान
की धार्मिक आस्था का अभिन्न अंग है
तो यह आशुतोष महाराज ने अपने समस्त
शिष्यों को सिखाई होगी। इस पर
आशुतोष महाराज की शिष्या
साध्वी तपेश्वरी भारती ने कोर्ट में
कुछ कहने की अनुमति मांगी।
अनुमति मिलने पर उन्होंने कहा कि
“साईं बाबा के समाधि लेने के बाद
ऐसा अनिवार्य नहीं हुआ था कि उनके
सभी शिष्य समाधि लें। आदि गुरु
शंकराचार्य व अन्य संतों की समाधि
के बाद भी न तो उनके शिष्यों पर भी
समाधि में जाने कि न तो
अनिवार्यियता रही है। ऐसा भी
नहीं है की यदि शिष्य समाधि में न
जाएं तो उनके गुरु की समाधि की
प्रमाणिकता नहीं रहती।”

साध्वी ने कहा कि “अपने गुरु की
समाधि पर उनकी निष्ठा हिंदु धर्म
की ‘गुरु-शिष्य परंपरा’ के अभिन्न
सिद्धांत के अनुरूप है जिसमे गुरु आज्ञा
का पालन ही सर्वोपरि धर्म है।
आशुतोष महाराज ने अपने शिष्यों को
स्वयं समाधि में जाने के विषय में
बताया था इसलिए उनकी समाधि के
संरक्षण के प्रति शिष्यों का धर्म
बनता है।”

साध्वी ने यह भी कहा “विज्ञान का
सिद्धान्त है कि जैसा विषय हो वैसा
ही उसके विश्लेषण का माध्यम होना
चाहिए। जिस प्रकार सूक्षम
जीवियों के निरिक्षण के लिए
माइक्रोस्कोप की आवश्यकता पड़ती
है और क्वांटम विशियों पर क्वांटम
स्थर के ही सिद्धांत लगाये जाते हैं।
उसी प्रकार हमारा समाधि का
विषय एक विभिन्न चेतना और
विभिन्न क्रम का सिद्धान्त है, इसको
समझने के लिए यदि हम उचित
अध्यात्मिक पद्धति को अपनायेंगे तो
हम समझ पाएंगे कि समाधि कोई
अतार्किक विषय नहीं है अपितु यह
अति चेतना अवं युक्ति संगत विषय है।”

वरिष्ठ अधिवक्ता सुनील चड्ढा ने
कोर्ट में संन्यास के विषय को भी
उठाया, तब कोर्ट ने कहा कि इस पर
कोई विवाद नहीं है की आशुतोष
महाराज सन्यासी थे तथा उन्होंने
सांसारिक जीवन को त्याग दिया
था। जब अनुयाई एवं याचिकाकर्ता
दोनों ही यह मानते हैं कि उन्होंने
संन्यास लिया था तो इस विषय पर
कोई मतभेद ही नहीं पैदा होता।
कोर्ट ने यह प्रश्न भी पूछा की क्या
आशुतोष महाराज ने स्वयं अपने प्रवचनों
में समाधि के विषय में कहा है या
संस्थान के साहित्य में समाधि के बारे
में कुछ आता है। इस पर सुनील चड्ढा
द्वारा कोर्ट में संस्थान द्वारा
प्रकाशित साहित्य में से आशुतोष
महाराज के वचन और उनके विचारों को
पढ़ा गया। इस दौरान कोर्ट ने कहा
कि यह सभी प्रश्न तथ्यों से जुड़े हैं तथा
इनका निपटारा सिविल कोर्ट में ही
किया जा सकता है।

इस पर अनुयायों के वकील ने कहा कोर्ट
की यह टिपण्णी उचित है और ऐसी
परिस्थिति में रिट कोर्ट को इस मसले
में दखल नहीं देना चाहिए था। अनुयाई
पक्ष की दलीलें ख़तम होने के बाद
तथाकथित बेटे के वकील अपना पक्ष
रखने को कहा। दलीप झा के वकील
ऐसा कोई भी क़ानून कोर्ट में नहीं रख
पाये जिससे आशुतोष महाराज के शरीर
के अंतिम संस्कार का दावा कर पाएं।
मुक़दमे की अगली सुनवाई के लिए 1
मार्च 2017 की तारीख़ तय की गई है,
इस दिन पंजाब सरकार अपनी दलीलें
कोर्ट में रखेंगी।

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