रेलवे,ट्रैक बनाने के लिए किसी भी व्यक्ति की जमीन लेता है तो उसे उसकी जमीन का मुआवजा भी देता है पर जब 2007 में जमीन अधिग्रहण के बाद जब रेलवे ने किसान को तय राशि से कम मुआवजा दिया तो उसने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने उसे मुआवजे की बकाया राशि तो नही दी पर पूरी की पूरी ट्रेन उसके नाम कर दी।
मामला लुधियाना के कटाना गांव का है जहां पर रेलवे नें 2007 में किसान समपुरण सिंह की जमीन रेलवे ने ली थी।
इसका मुआवजा कुल 1.47 करोड़ बनता था लेकिन रेलवे ने इसे केवल 42 लाख रुपए ही दिए।
2012 में समपुरण कोर्ट पंहुचे और इस मामले में 2015 में फैसला आया। रेलवे ने जब मुआवजा नही दिया । तब अदालत ने किसान के नाम स्वर्ण शताब्दी एक्सप्रेस कर दी थी और उसे लेजाने की अनुमति भी दे दी थी।यह ट्रेन दिल्ली और अमृतसर के बीच चलती थी।
अदालत के फैसले के बाद किसान ट्रेन पर कब्जा करने के लिए समपुरण मौके पर भी पंहुचे और वकील ने कोर्ट का आदेश पत्र ट्रेन का पायलट को सौंपा लेकिन सेक्शन इंजीनियर प्रदीप कुमार ने सुपरदारी के आधार पर ट्रेन को किसान के कब्जे में जाने से रोक लिया और अब यह ट्रेन कोर्ट के कब्जे में है।
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